उज्जैन. जहां एक ओर गणेशोत्सव को लेकर शहर में बाजार गर्म है, वहीं विक्रम विश्वविद्यालय के परिसर में मिट्टी की सौंधी खुशबू बसी है। ( Eco friendly Ganesha idol created by Vikram University ) वहां मशीनों की बजाय हथेलियां मूर्तियां गढ़ रही हैं, और रसायनों की जगह श्रद्धा के फूल रंग भर रहे हैं। उत्सव भले एक महीने बाद है, लेकिन यहां तैयारी सिर्फ आयोजन की नहीं, चेतना जगाने की हो रही है पर्यावरण, आस्था और आत्मनिर्भरता के त्रिकोण पर खड़ी एक नई परंपरा रचने की। यह उज्जैन की किसी गली, मंडी या सजावटी बाजार की बात नहीं है यह उन युवाओं की कहानी है, जिन्होंने तय किया है कि गणेश सिर्फ पूजे नहीं जाएं, बल्कि संवेदनशीलता और सृजनशीलता का संदेश भी दें।
विक्रम विश्वविद्यालय के छात्रों ने एक अनूठी इको-फ्रेंडली गणेश कार्यशाला शुरू की है, जिसमें मिट्टी से मूर्तियां गढ़ी जा रही हैं, उनमें प्रयागराज से लाया गया गंगाजल मिलाया जा रहा है, महाकाल के फूलों का पाउडर सजावट में काम आ रहा है और विसर्जन के बाद तुलसी अंकुरित हो इसके लिए बीज डाले जा रहे हैं।
गणेश कार्यशाला की खास बात यह है कि इन मूर्तियों के निर्माण में श्री महाकालेश्वर मंदिर में चढ़ाए गए फूलों को सुखाकर उनका पाउडर प्रयोग में लिया जा रहा है। इसके अलावा हाल ही में प्रयागराज कुंभ से प्राप्त गंगाजल को भी इन मूर्तियों में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे ये मूर्तियां न सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल हैं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी समृद्ध हैं।
एक और खास पहल यह है कि इन गणेश मूर्तियों को गमले में विसर्जित किया जा सकता है। मूर्तियों में तुलसी के बीज डाले जा रहे हैं, जिससे विसर्जन के कुछ ही दिनों बाद गमले में तुलसी का पौधा उग आएगा यह न सिर्फ आध्यात्मिक अनुभव देगा, बल्कि पर्यावरण के लिए भी लाभकारी होगा।
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अपने हाथों से बनाए अपने गणपति
इस अभियान को अपने गणपति, अपने हाथों से थीम के तहत आयोजित किया जा रहा है। कार्यशाला दो चरणों में 1 से 7 अगस्त और 12 से 18 अगस्त तक चलेगी। इसमें छात्रों को मोल्ड से और हाथ से मूर्ति गढ़ने की दो विधियां सिखाई जा रही हैं।
बायोटेक्नोलॉजी के छात्र मृत्युंजय बड़ोले और इस अभियान के सदस्य बताते हैं कि हमारी टीम में अभी 7-8 कोर मेंबर हैं और लगभग हर विभाग के छात्र जुड़ रहे हैं। इस बार हमारा लक्ष्य कम से कम 101 गणेश मूर्तियां बनाना हैं पिछले साल हमने 51 बनाई थीं। अगर रुचि और सहयोग बढ़ता है, तो यह संख्या और भी बढ़ सकती है।
फाइन आर्ट्स, बायोटेक सहित कई विभागों के छात्र जुड़े
इस अभियान को विक्रम विश्वविद्यालय, कला मंच और नीरज जोशी कला सम्मान मंच के संयुक्त प्रयास से अंजाम दिया जा रहा है। फाइन आर्ट्स, बायोटेक, फॉरेंसिक साइंस, सोशल साइंस और अन्य विभागों के छात्र इसमें भाग ले रहे हैं। महाकाल के फूलों का प्रोसेसिंग कार्य बायोटेक्नोलॉजी विभाग में किया जा रहा है।
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लर्न एंड अर्न मॉडल
यह कार्यशाला लर्न एन्ड अर्न मॉडल पर आधारित है, जहां छात्र न केवल मूर्ति निर्माण सीखते हैं, बल्कि उन्हें बाजार में विक्रय के लिए तैयार भी करते हैं। मूर्तियां विभिन्न आकारों में तैयार की जा रही हैं, जिनकी कीमत 150 से 450 तक तय की गई है। इससे अधिक आकार और वजन की मूर्तियों के लिए ऑर्डर पर निर्माण किया जा रहा है। कार्यशाला में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों को प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाएगा, जिससे भविष्य में यदि वे इस क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहें, तो उनके पास एक मान्यता प्राप्त अनुभव रहेगा।
Eco friendly Ganesha idol created by Vikram University: विक्रम विश्वविद्यालय में छात्र बना रहे ईको-फ्रेंडली गणेश की मूर्तियां
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